Sunday, August 31, 2008

अर्ज़ किया है..................

"पहले भी कुछ लोगों ने जौ बो कर गेहूं चाहा था,
हम भी इस उम्मीद में हैं लेकिन कब ऐसा होता है।"

ये पंक्तियाँ मुझे पढने को मिलीं जावेद अख्तर की किताब तरकश में। पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया। इस किताब को जब भी उठाती हूँ, हर बार कोई नई पंक्ति मन को छू जाती है।

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