आखरी उम्मीद ख़त्म होने का एहसास क्या है, ये गुलज़ार साहब की इन पंक्तियों में बड़ी शिद्दत के साथ महसूस किया है। जब से ये गीत सुना है, रात में अक्सर इसे सुनकर रोई हूँ । इस से ज्यादा में कुछ नहीं कहूँगी।
अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ,
अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ,
वो जो बहते थे आबशार कहाँ
अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ।
आँख के एक गाँव में
रात को ख्वाब आते थे
छूने से बहते थे
बोले तो कहते थे
उड़ते ख्वाबों का ऐतबार कहाँ
उड़ते ख्वाबों का ऐतबार कहाँ
अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ।
जिन दिनों आप थे,
आँख में धूप थी
जिन दिनों आप रहते थे,
आँख में धूप रहती थी
अब तो जाले ही जाले हैं
ये भी जाने ही वाले हैं
वो जो था दर्द का करार कहाँ
वो जो था दर्द का करार कहाँ
अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ
वो जो बहते थे आबशार कहाँ
अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ
अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ।
फिल्म- इश्किया
गीतकार- गुलज़ार
संगीतकार- विशाल भारद्वाज
गायिका- रेखा भारद्वाज