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Saturday, September 20, 2008

दर्द की बारिश..............

दर्द की बारिश सही मद्धम ज़रा अहिस्ता चल,

दिल की मिटटी है अभी तक नम ज़रा अहिस्ता चल।

तेरे मिलने और फिर तेरे बिछड जाने के बीच,

फासला रुसवाई का है कम ज़रा आहिस्ता चल।

अपने दिल ही में नही है उसकी महरूमी की याद,

उस की आंखों में भी है शबनम ज़रा आहिस्ता चल।

कोई भी हमसफ़र 'रशीद' न हो खुश इस कदर,

अब के लोगों में वफ़ा है कम ज़रा आहिस्ता चल।

(मुमताज़ रशीद)