Thursday, April 10, 2008

kya kahen.









बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
एक बेवफा का अहदे- वफ़ा याद आ गया।

आश्चर्य की बात है की यादों का मौसम से कितना गहरा ताल्लुक होता है। ज़रा से बादल घिरते ही कितना कुछ याद आ गया। यही यादें तो जीना मुश्किल किए हुए हैं। पता नही कब तक इन यादों के दौर चलेंगे।

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