Sunday, February 22, 2009

मुझसे पहले..........

मुझसे पहले तुझे जिस शख्स ने चाह उसने
शायद अब भी तेरा ग़म दिल से लगा रक्खा हो
एक बेनाम सी उम्मीद पे अब भी शायद
अपने ख्वाबों के ज़ज़ीरों को सजा रक्खा हो।

मैंने माना की वह बेगाना-ए-पैमाने वफ़ा
खो चुका है जो किसी और की रानाई में
शायद अब लौट के न आए तेरी महफिल में
और कोई दुःख न रुलाये तुझे तन्हाई में।

मैंने माना की शबो-रोज़ के हंगामों में
वक्त हर ग़म को भुला देता है रफ्ता रफ्ता
चाहे उम्मीद की शमए हों की यादों के चराग
मुस्तकिल बो'दा बुझा देता है रफ्ता रफ्ता

फ़िर भी माजी का ख्याल आता है गाहे गाहे
मुद्दतें दर्द की लौ कम तो नही कर सकतीं
ज़ख्म भर जायें मगर दाग तो रह जाता है
दूरियों से कभी यादें तो नही मर सकतीं

यह भी मुमकिन है की एक दिन वह पशेमा होकर
तेरे पास आए ज़माने से किनारा कर ले
तू की मासूम भी है जूद-फरामोश भी है
उसकी पैमा शिकनी को भी गवारा कर ले

और में, जिसने तुझे अपना मसीहा समझा
एक ज़ख्म और भी पहले की तरह सह जाऊँ
जिस पे पहले भी कई अहदे वफ़ा टूटे हैं
उसी दोराहे पे चुप-चाप खड़ा रह जाऊँ।

(ahmed faraz)

1 comment:

  1. Waha Waha Waha Waha Waha Waha ...

    Kya Baat Hai!

    nice collection

    keep it UP

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