सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं,
लेकिन ये सोचता हूँ की अब तेरा क्या हूँ मैं।
जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम,
दुनिया समझ रही है सब कुछ तेरा हूँ मैं।
(क़तील शिफाई)
इसके अलावा और क्या कहूं समझ नहीं आ रहा। ये सदमा भी अजीब शब्द होता है। तीन अक्षरों में सही हालत बयान कर देता है। इंसान कि कुछ भी महसूस करने कि शक्ति का ख़त्म हो जाना, हर चाहत ख़तम हो जाना, हर उम्मीद ख़त्म हो जाना, यही तो सदमा होता है। यही तो है जो पिछले कई दिनों से मुझे लगा है।
इस बात कि हैरानी भी कम नहीं है कि लोग किस तरह सब कुछ नकार देते हैं। हर एहसास, याद को झुठला देना बड़ा आसान होता है लोगो के लए। वक़्त हमें किस कदर बदल देता है। महज कुछ मिनटों में मेरे सारे ख्वाब ख़त्म हो गए। कहते हैं टूटे हुए सपनो कि किरचे चुभा करती हैं। मुझे तो वो एहसास भी नहीं होता, शायद दर्द ने हर एहसास ख़त्म कर दिया है।
रिश्ता इस तरह से बेमानी हो जायेगा ये नहीं सोचा था। पर अब जब हो ही गया है तो मुझे आगे का रास्ता ढूँढने में वक़्त लगेगा। कोशिश कर रही हूँ। शायद कामयाब भी हो जाऊं। अमीन।
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