Monday, March 10, 2008

saaya

इस फ़िल्म का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा और उस एस भी कम लोगों ने इसे देखा होगा। ये मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक है। मेरी पिछली पोस्ट के बारे मे मनीष जी के विचार पढ़ कर इस फ़िल्म के एक गाने की कुछ पंक्तियाँ याद आई जो कि इस प्रकार हैं-

वक्त मरहम है तेरा ज़ख्म भी वो भर देगा,
बिन तेरे जीने के लायक वो मुझे कर देगा,
फ़िर नए रास्ते देगा वो मेरे कदमों को,
फ़िर मुझे लौट के आने का कोई डर देगा।

इस फ़िल्म के निर्देशक थे अनुराग बासु और अभिनेता एवं अभिनेत्री थे जॉन अब्राहम(आकाश) और तारा शर्मा(माया) । इस फ़िल्म की मुझे जो बात सबसे ज्यादा पसंद आई थी वो ये थी की इसके गीत परिस्थितियों के अनुरूप थे। इसका हर गीत मुझे बहुत पसंद है। जो पंक्तियाँ मैंने ऊपर प्रस्तुत करी हैं वो दरअसल अंतरे में आती हैं। मुखड़ा कुछ इस तरह है-

जो न होना था, वो मुझे होना पड़ा ,
आज खो कर तुझे जिंदा रहना पड़ा ,
वक्त ने जो दिया मुझे वो जख्म सीना पड़ा।

एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से सम्बन्ध उसकी म्रत्यु के बाद भी रहता है। आपके अवचेतन मन में वो इंसान हमेशा जीवित रहता है जिस से आप जुड़े हुए होते हैं। माया के चले जाने के बाद भी आकाश को ये अहसास होता रहता है की माया उस से कुछ कहना चाहती है। माया के लिए उसका प्यार और उसका विश्वास उसे कहाँ तक ले जाता है ये मैं आपको नही बताऊंगी। आप अगर ख़ुद इस फ़िल्म को देखेंगे तभी इसमे छिपी हुई और व्यक्त की गई हर भावना को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे।

जहाँ तक इस गीत का सवाल है, इसे गाया है श्रेया घोषाल और उदित नारायण ने। इसके बोल लिखे हैं सईद कादरी जी ने। ये गाना फ़िल्म में दो बार आता है। पहले माया की मौत के बादश्रेया घोषाल की आवाज़ में। कुछ इस तरह के बोल हैं-
दूर दुनिया से तेरे इतना चली आई हूँ,
आज में जिस्म नही आज मैं परछाई हूँ,
हर जगह भीड़ का सैलाब तेरे चारों तरफ़,
मैं अपने आप में सिमटी हुई तन्हाई हूँ।
जो भी हासिल हुआ पा के खोना पड़ा।

पास हैं मेरे तेरे साथ गुज़रे लम्हे,
कुछ अधूरे रहे कुछ पूरे हो गए सपने।
बहुत संभाल के रखती हूँ इनको सीने में ,
अब इस जहाँ में मेरे तोह हैं यही अपने,
याद कर के जिन्हें रात दिन रोना पड़ा।

दूसरी बार ये गीत आता है उदित नारायण की आवाज़ में जब आकाश अपनी हालत के चलते शहर छोड़ने का इरादा बना लेता है। उस वक्त ये पंक्तियाँ सुनाई पड़ती हैं-

फ़िर कहीं शहर में छोटा सा घर बना लूंगा,
तू सजा था कभी उस तरह में सजा लूंगा,
फ़िर नए रंगों से रंग लूंगा उसकी दीवारें,
कुछ नए ख्वाब भी गमलों में मैं लगा लूंगा।
तेरे गम का ज़हर यूं भी पीना पड़ा,
आज खो कर तुझे जिंदा रहना पड़ा ,
वक्त ने जो दिया मुझे वो ज़ख्म सीना पड़ा।

इस गाने के बोल इतने सहज एवं सरल हैं कि ज्यादा कुछ कहने कि आवश्यकता बाकी नही रह जाती। फुरसत के वक्त और खासकर के जब मन थोड़ा उदास हो में इस गाने को गुनगुनाना पसंद करती हूँ।


3 comments:

  1. im read your blog and realy it's 2 good. can u tell me what ru doing?

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. hi malay.
    i m an engineering student, IT stream.

    ReplyDelete