Monday, November 24, 2008

एक और शेर.......

उंगलियाँ आज भी इस सोच में गम हैं फ़राज़,
उसने किस तरह नए हाथ को थमा होगा।
(अहमद फ़राज़)

आज कल ये नया शौक आया है मुझे। अहमद फ़राज़ की लिखी हुई नज़्मेऔर शेर पढ़ने का। ऑरकुट पर अहमद फ़राज़ की कम्युनिटी में जब ये शेर पढ़ा तो एक ही बार में दिल को छू गया। हर वो इंसान जिसने प्यार में धोका खाया है शायद बरसों-बरस इसी सोच में गम रहता है। सच ये है की कितना भी क्यूं न सोच लिया जाए कोई फर्क नही पड़ता। कुछ लोग दुनिया में आते ही धोके-बाज़ी के लिए हैं। ऐसे ही लोगों के दिए हुए ज़ख्मो को बड़ी ही खूबसूरती से बयान करता है ये शेर।
मेरी बीमारी ठीक होने का नाम नही ले रही है। जैसे जैसे वक्त गुज़रता जा रहा है, सर का दर्द और भयानक होता जा रहा है। मैंने अपने पुराने रिश्तों को भुला दिया है। नए सिरे से शुरुवात करना चाहती हूँ, नए नज़रिए के साथ। पर तबियत है की साथ ही नही देती। सब कहते हैं की कुछ दिनों बाद दर्द की दवाइयाँ भी अपना असर बंद कर देती हैं। यही चाहती हूँ की वो नौबत आने से पहले ठीक हो जाऊँ। हे भगवान्! मेरी मदद करो।

Thursday, November 6, 2008

ख्वाब.......

ख्वाब मरते नहीं,
ख्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें के जो,
रेज़ा-रेज़ा हुए तो बिखर जायेंगे
जिस्म की मौत से ये भी मर जायेंगे।

ख्वाब मरते नहीं,
ख्वाब तो रौशनी हैं, नवा हैं, हवा हैं,
जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं
ज़ुल्म के दोज़खों से भी फुकते नही
रौशिनी और नवा और हवा के आलम
मक्तालों में पहुँच कर भी झुकते नहीं।

ख्वाब तो हर्फ़ हैं
ख्वाब तो नूर हैं
ख्वाब तो सुकरात हैं,
ख्वाब मंसूर हैं।

(अहमद फ़राज़)


Monday, October 13, 2008

मुझे तेरी मुहब्बत का ..............

इस गाने के बारे में ज्यादा कुछ नही जानती। बस इसे कुछ दिन पहले पहली बार सुना 'rafi reconstructed' नाम के कार्यक्रम में, जब सोनू निगम ने ये गाना गाया। इस गाने की धुन और शब्द कुछ ऐसे हैं की दिल को छू गए। गाना कुछ इस प्रकार है,

दिल शाद था की फूल खिलेंगे बहार में,
मारा गया गरीब इसी ऐतबार में।

मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता,
अगर तूफां नही आता किनारा मिल गया होता।

न था मंजूर किस्मत को,
न थी मर्ज़ी बहारों की,
नही तो इस गुलिस्ता में
कमी थी क्या नज़रों की,
मेरी नज़रों को भी कोई नज़ारा मिल गया होता,
अगर तूफा नही आता किनारा मिल गया होता।
मुझे तेरी........................

खुशी से अपनी पलकों को,
में अश्को से भिगो लेता,
मेरे बदले तू हंस लेती,
तेरे बदले में रो लेता,
मुझे ए- काश तेरा दर्द सारा मिल गया होता,
अगर तूफा नही आता किनारा मिल गया होता।
मुझे तेरी.......................


मिली है रौशनी जिनको,
ये उनकी अपनी किस्मत है,
मुझे अपने मुकद्दर से,
फकत इतनी शिकायत है,
मुझे टूटा हुआ कोई सितारा मिल गया होता,
अगर तूफा नही आता किनारा मिल गया होता,
मुझे तेरी..............




Friday, September 26, 2008

LOVE STORY......................


'WHAT CAN U SAY ABOUT A 24 YEAR OLD GIRL WHO DIED'


this is the opening line of one of my favourite books, LOVE STORY. as the title suggests its a love story. in every way its a love story where every bond between different characters is based on love and its different forms. the love between a girl and a boy, the love between a father and a daughter, the love between a son and his parents which never existed.


the most wonderful thing about this book was that the end was declared in the first line itself. so there was no mystery involved. its merely a tale of pure emotions. simple conversations and circumstances touches your heart.


the hero of the story oliver hates his parents and his heritage just too much. whereas the heroine jennifer loves everything in her life, including her father and oliver with great passion and devotion. love begins to unfold between these two individuals whose opinions and passions are as opposite as noth and south poles. but the only thing that bindsthem together is their love for one another.life is not always a bed of roses. after a hell lot of struggle when they were able to get together and build a new life for themselves, oliver discovers that jenny is dying. slowly like a flower jenny withers and finally dies. but the emotions reciprocated in the words of eric segal cannot be depicted in my post.


one can understand love story and its effect only by reading it. its a story of love, passion, compromises, devotion, understanding and emotions. and the moral of the story is,

'LOVE MEANS NEVER HAVING TO SAY YOU ARE SORRY.'


Saturday, September 20, 2008

दर्द की बारिश..............

दर्द की बारिश सही मद्धम ज़रा अहिस्ता चल,

दिल की मिटटी है अभी तक नम ज़रा अहिस्ता चल।

तेरे मिलने और फिर तेरे बिछड जाने के बीच,

फासला रुसवाई का है कम ज़रा आहिस्ता चल।

अपने दिल ही में नही है उसकी महरूमी की याद,

उस की आंखों में भी है शबनम ज़रा आहिस्ता चल।

कोई भी हमसफ़र 'रशीद' न हो खुश इस कदर,

अब के लोगों में वफ़ा है कम ज़रा आहिस्ता चल।

(मुमताज़ रशीद)

Friday, September 5, 2008

आपबीती......

" जीत ले जाए कोई मुझ को नसीबों वाला,
ज़िन्दगी ने मुझे दांव पे लगा रक्खा है।"
(क़तील शिफाई )

कहते हैं की जब हम कुछ सोचते रहते हैं तो हमारे खयालातों से जुड़ी कई बातें अपने आप हमारी आंखों के सामने आने लगती हैं। पिछले दो महीनों में जो कुछ भी सहा उसके बाद यही महसूस हो रहा था की मैं तो सच मुचजिन्दगी की हाथों कठपुतली बन गई हूँ, और आज अचानक ये शेर दिख गया। लगा जैसे मेरे ही दिल की बात किसी ने शब्दों में बयां कर दी हो।

Sunday, August 31, 2008

अर्ज़ किया है..................

"पहले भी कुछ लोगों ने जौ बो कर गेहूं चाहा था,
हम भी इस उम्मीद में हैं लेकिन कब ऐसा होता है।"

ये पंक्तियाँ मुझे पढने को मिलीं जावेद अख्तर की किताब तरकश में। पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया। इस किताब को जब भी उठाती हूँ, हर बार कोई नई पंक्ति मन को छू जाती है।

Saturday, August 2, 2008

अकेलापन.......

पिछले कुछ समय से अकेले होने का जो एहसास सुबह शाम मुझे कचोट रहा है , उसे में शब्दों में न तो बयां कर पा रही हूँ और न ही उसकी वजह समझ पा रही हूँ।आज अपने आस पास देखती हूँ तो लगता है की पिछले एक साल में सब आगे बढ़ गए हैं बस में वहीँ की वहीँ हूँ। सब मुझसे खुश हैं पर में अपने आप से अपनी जिंदगी से खुश नही हूँ। एक खालीपन है जो शायद पहले भी था पर जिसका दंश कभी इस कदर नही चुभा जिस तरह अब चुभ रहा है। सबकी नज़र में बड़े आराम की जिंदगी है मेरी। हर सेमेस्टर में टॉप करती हूँ, मेरे हाथ में नौकरी है, और मेरे माँ पापा को मुझ पर गर्व है। पर कोई भी ये नही समझ पता की एक साल पहले जिंदगी जीने की, हर मुसीबत का डट कर सामना करने की जो चाहत थी, जो जस्बा था, वो कहीं खो गया है। उसकी वजह में जानती हूँ, और मेरा भगवान् जनता है की मैंने कितनी कोशिश करी की उस शख्स को में अपने जीवन की सबसे बुरी दुर्घटना समझ कर भूल जाऊँ, पर साल भर बाद भी में वहीं हूँ। कोशिश करके कुछ वक्त तक ख़ुद पर संयम रख पाती हूँ पर फिर वही सवाल बार बाद दिलो दिमाग की दीवारों से टकराने लगता है की आख़िर क्यूं? मैं ही क्यूं? मैंने कभी भी कोई ऐसा कदम नही उठाया जिसके लिए मुझे किसी से भी नज़र मिलाने में हिचकिचाहट हो। पर अब मैं ख़ुद को इस सवाल का जवाब नही दे पति की मैं वो कैसे नही देख पाई जो सच मेरी आंखों के सामने था। जिसने धोखा दिया उसका तो कुछ नही बिगड़ा पर मेरे तो जीने की ललक खो गई । आज किसी रिश्ते पर भरोसा नही रह गया। ऐसा लगता है की शायद अब जिंदगी मैं कभी प्यार नही कर पाऊँगी। किसी पर भी विश्वास नही कर पाऊँगी। मैं पुनर्जन्म में विश्वास नही करती। मैंने जो कुछ जीया है उसका हिसाब मुझे मेरे भगवान् से इसी जन्म में चाहिए। हर उस रात का हिसाब चाहिए जब मुझे ये सोच कर नींद नही आई की मैं ग़लत कहाँ थी? बहुत कोशिश करी सब भूल कर आगे बढ़ने की। दूसरों की नज़रों में शायद मैं आगे बढ़ भी चुकी हूँ । पर अपने आप से अब और झूठ नही बोल सकती। मैं क्या करूँ ?

Sunday, July 27, 2008

what i learnt..............

"when you are down, people can pull you up but you still have to stand on your own two feet."

its so true. whenever we are in a real fix we have some people around us who help us to stand again. but the real strength to stand up again comes from within us. some people likes to live in their own miseries. i have seen a hell lot of people who are never ready to let go of any thing, any relation or any emotion. i think that is not the way life should be. life is meant to be lived with all its good and bad moments. a real winner is a person who manages to smile through tears and thus make others smile to along with him. i m trying to follow this path and i hope i will finally succeed.

Tuesday, June 24, 2008

अब मालूम हुआ .......


धुप है क्या और साया क्या अब मालूम हुआ,

ये सब खेल तमाशा क्या है अब मालूम हुआ।


हंसते फूल का चेहरा देखूं और भर आई आँख,

अपने साथ ये किस्सा क्या है अब मालूम हुआ।


हम बरसों के बाद भी उनको अब तक भूल न पाए,

दिल से उनका रिश्ता क्या है अब मालूम हुआ।


सेहरा सेहरा प्यासे भटके सारी उम्र जले,

बादल का इक टुकडा क्या है अब मालूम हुआ।


(ज़फर गोरखपुरी)



Thursday, June 5, 2008

learning from life

"i guess i am learning, little by little, that we decide what our lives are going to be. things happens to us, but its our reactions that matters."

yesterday i had a discussion with my mom on this subject. people react in different ways under similar situations and its their reaction that decides the course of their life. facing a problem either physical or mental has never been easy for anyone in this world. the only thing which we can do in such situation is to have faith in god and our own abilities. time is the greatest healer. and when it teaches us the facts of life through togh experiences, we always come out as a better person. the most important thing that my life has tought me in last few months is to learn to let go. we have to move on in life by letting go people, emotions and memories. a better perspective can turn a foggy situation to a bright day. its only way of thinking that matters. whenever we get defeated all we can do is to learn from yhe mistake that we have made and get up back with more determination. when we make up our mind to achieve a goal then god comes by our side. as their was a dialouge in om shanti om-
"अगर किसी चीज़ को बहुत शिद्दत से चाहो , सारी कायनात तुम्हें उस से मिलाने की कोशिश में जुट जाती है।"


Thursday, May 29, 2008

आँख से आँख मिला

आँख से आँख मिला बात बनता क्यूं है,

तू अगर मुझसे खफा है तो छुपता क्यूं है।

गैर लगता है न अपनों की तरह मिलता है,

तू ज़माने की तरह मुझको सताता क्यूं हैं।

वक्त के साथ हालात बदल जाते हैं,

ये हकीक़त है मगर मुझको सुनाता क्यूं है।

एक मुद्दत से जहाँ काफिले गुज़रे ही नही,

ऐसी राहों पे चरागों को जलाता क्यूं है।

(सईद राही )

Saturday, May 10, 2008

yet another thought.




though i am quite busy now a days, yet i took out the time to go through some of the inspirational thoughts. i found this to be very thought provoking-


"life is truly known only to those, who suffer, lose, endure adversity and stumble from defeat to defeat."


it forced me to think and realise that what all i have gained today is all because of what i have gone through. due to those tough days i have become more strong. thank you god for giving me the courage to face those days and helping me to become a better person.

Thursday, May 1, 2008

starting again

in the afternoon i was going through some motivational thoughts when i came across this one-

"though you cannot go back and start again,
you can start from now and make a brand new end."


and than across this-

"things happen for a reason. if you have a bad day and you dont think that you can get through, always remember that no matter how bad something may seem, there is a reason why they happen. there is a plan for everyone on this earth, if it means learning from your mistake and passing it on so that someone else doesnt go through it. could mean that we were strong enough to go through something bad when someone else may be too weak to go through and we teach them from our experience, in the process we become a better person and learn from our mistakes."

really nice thoughts. so thought of posting them. as now exam dates are out, i m a little worried. i could not study anything for this whole semester. first there was preparations for campus recruitment and then my migraine problem. but now i will work hard. i have to beat my own previous record as a topper. though i am worried yet a bit happy as i have again got a goal to achieve and keep my mind busy. therefore i will not get any free time to think about stupid things . i think i always would be in need to do something to keep away from thinking. god help me.

Sunday, April 27, 2008

memories


"one of the main reason why people hold on to memories so tight is because memories are the only thing which do not change when everyone else does."


(anonymous)

Tuesday, April 22, 2008

my state of mind

everything in life including our relations and emotions is temporary. people and situations which once seem to be the essence of life are no longer that important. even pain is temporary. i once again went through the same book in which emotions depicted are very close to my life but the path which its characters followed is far way from my principles and priorities in life. the oneliner which is stirring my soul since past few days is as-

"विषाद भी टिकाऊ नही हो सकता, विषाद भी दंभ है।"

my wounds seems to be healing as the time passes by. but any resemblence to the past, whether it is a situationor an individual brings back tons of memories which are hard to suppress and equally hard to face.
god, just give me more courage so that i can face my present more positively and happily. AMEEN!

Thursday, April 10, 2008

kya kahen.









बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
एक बेवफा का अहदे- वफ़ा याद आ गया।

आश्चर्य की बात है की यादों का मौसम से कितना गहरा ताल्लुक होता है। ज़रा से बादल घिरते ही कितना कुछ याद आ गया। यही यादें तो जीना मुश्किल किए हुए हैं। पता नही कब तक इन यादों के दौर चलेंगे।

Thursday, April 3, 2008

A SIMPLE THOUGHT


a simple but strong thought-

" it really hurts when someone you know changes to someone you knew."


just this much for today.



Monday, March 31, 2008

ye kya hua?

today i am not going to analyze any geet or ghazal or book as my doctot has advised me not to give any stress to my brain. recently i was declared to be sick with migraine. now only god can help me. i have to bring my habit of thinking to a full stop. i dont know how am i going to do this. till now no one knows that i have started blogging. i dont want anyone to know this. how on earth can ever a person can stop thinking. i dont do it in my spare time as a hobby. it comes naturally to me. now everyone, my family and my friends are behind me always shouting, " see, you are thinking again." what can i do. i am not permitted to read, write, switch on my computer or watch tv. so the only thing which i can do now a days is to think. so i am thinking about the causes of my stress. this has grown to be another stress for me.
i dont agree with the doctor that the major reason behind this disease in headache. i have read that its a heriditary problem. papa had it so any of us had to get it. unfortunately i got it. mom says its not a misfortune. the reason why i got it and my siblings didn't is my habit of thinking. my mom is surely a genius. but she also couldn't tell me a sure-shot way to stop thinking. besides this i also dont know what that i am thinking is causing this problem. this is another reasn to think for me.as the pain is still there after 10 days of medication, now everyone is worried that there can be some other problem or better to say that the disease was not diagnosed properly. now i have to go for ctscan tomorrow.
best of luck to me.

Friday, March 28, 2008

आदतन तुम ने कर दिए वादे.

आदतन तुम ने कर दिए वादे,
आदतन हम ने ऐतबार किया
तेरी राहों मे बारहा रुक कर,
हम ने अपना ही इंतज़ार किया।
अब न मांगेंगे ज़िंदगी या रब,
ये गुनाह हम ने एक बार किया।
(गुलज़ार)








Thursday, March 27, 2008

दर्द अपनाता है

दर्द अपनाता है पराये कौन,


कौन सुनताहै और सुनाये कौन।


कौन दोहराए वो पुरानी बात,


दर्द अभी सोया है जगाये कौन।


वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं,


कौन दुःख झेले आजमाये कौन।


अब सुकून है तो भुलाने में है,


लेकिन उस शख्स को भुलाए कौन।


आज फिर दिल है उदास उदास ,


देखिये आज याद आए कौन।

( जावेद अख्तर)


Saturday, March 22, 2008

आगाज़ तो होता है, अंजाम नहीं होता.

आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता,
जब मेरी कहानी में वो नाम नही होता।

जब जुल्फ की स्याही मे घुल जाये कोई राही,
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नही होता।

हँस-हँस के जवां दिल के हम क्यों ना चुनें टुकडे,
हर शख्स की किस्मत मे ईनाम नहीं होता।

बहते हुए आंसू ने आंखों से कहा थम कर,
जो मय से पिघल जाये वो जाम नही होता।

दिन डूबे हैं या डूबी बरात लिए कश्ती,
साहिल पे मगर कोई कोहराम नही होता।

(मीना कुमारी)

Monday, March 17, 2008

शम्मा जलाये रखना

शम्मा जलाये रखना, जब तक के मैं न आऊं।

ख़ुद को बचाए रखना, जब तक के मैं न आऊं।

जिन्दा-दिलों से दुनिया जिंदा सदा रही है,

महफिल सजाये रखना जब तक के मैं न आऊं।

ये वक्त इम्तिहा है, सबरो-करार दिल का,

आंसू छुपाये रखना, जब तक मैं न आऊं।

हम-तुम मिलेंगे ऐसे जैसे जुदा नही थे,

साँसे बचाए रखना, जब तक के मैं न आऊं।

शम्मा जलाये रखना, जब तक के मैं न आऊं।

गायक- भूपिंदर एवं मिताली जी

गीतकार( पता नही)

Monday, March 10, 2008

saaya

इस फ़िल्म का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा और उस एस भी कम लोगों ने इसे देखा होगा। ये मेरी पसंदीदा फिल्मों में से एक है। मेरी पिछली पोस्ट के बारे मे मनीष जी के विचार पढ़ कर इस फ़िल्म के एक गाने की कुछ पंक्तियाँ याद आई जो कि इस प्रकार हैं-

वक्त मरहम है तेरा ज़ख्म भी वो भर देगा,
बिन तेरे जीने के लायक वो मुझे कर देगा,
फ़िर नए रास्ते देगा वो मेरे कदमों को,
फ़िर मुझे लौट के आने का कोई डर देगा।

इस फ़िल्म के निर्देशक थे अनुराग बासु और अभिनेता एवं अभिनेत्री थे जॉन अब्राहम(आकाश) और तारा शर्मा(माया) । इस फ़िल्म की मुझे जो बात सबसे ज्यादा पसंद आई थी वो ये थी की इसके गीत परिस्थितियों के अनुरूप थे। इसका हर गीत मुझे बहुत पसंद है। जो पंक्तियाँ मैंने ऊपर प्रस्तुत करी हैं वो दरअसल अंतरे में आती हैं। मुखड़ा कुछ इस तरह है-

जो न होना था, वो मुझे होना पड़ा ,
आज खो कर तुझे जिंदा रहना पड़ा ,
वक्त ने जो दिया मुझे वो जख्म सीना पड़ा।

एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से सम्बन्ध उसकी म्रत्यु के बाद भी रहता है। आपके अवचेतन मन में वो इंसान हमेशा जीवित रहता है जिस से आप जुड़े हुए होते हैं। माया के चले जाने के बाद भी आकाश को ये अहसास होता रहता है की माया उस से कुछ कहना चाहती है। माया के लिए उसका प्यार और उसका विश्वास उसे कहाँ तक ले जाता है ये मैं आपको नही बताऊंगी। आप अगर ख़ुद इस फ़िल्म को देखेंगे तभी इसमे छिपी हुई और व्यक्त की गई हर भावना को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे।

जहाँ तक इस गीत का सवाल है, इसे गाया है श्रेया घोषाल और उदित नारायण ने। इसके बोल लिखे हैं सईद कादरी जी ने। ये गाना फ़िल्म में दो बार आता है। पहले माया की मौत के बादश्रेया घोषाल की आवाज़ में। कुछ इस तरह के बोल हैं-
दूर दुनिया से तेरे इतना चली आई हूँ,
आज में जिस्म नही आज मैं परछाई हूँ,
हर जगह भीड़ का सैलाब तेरे चारों तरफ़,
मैं अपने आप में सिमटी हुई तन्हाई हूँ।
जो भी हासिल हुआ पा के खोना पड़ा।

पास हैं मेरे तेरे साथ गुज़रे लम्हे,
कुछ अधूरे रहे कुछ पूरे हो गए सपने।
बहुत संभाल के रखती हूँ इनको सीने में ,
अब इस जहाँ में मेरे तोह हैं यही अपने,
याद कर के जिन्हें रात दिन रोना पड़ा।

दूसरी बार ये गीत आता है उदित नारायण की आवाज़ में जब आकाश अपनी हालत के चलते शहर छोड़ने का इरादा बना लेता है। उस वक्त ये पंक्तियाँ सुनाई पड़ती हैं-

फ़िर कहीं शहर में छोटा सा घर बना लूंगा,
तू सजा था कभी उस तरह में सजा लूंगा,
फ़िर नए रंगों से रंग लूंगा उसकी दीवारें,
कुछ नए ख्वाब भी गमलों में मैं लगा लूंगा।
तेरे गम का ज़हर यूं भी पीना पड़ा,
आज खो कर तुझे जिंदा रहना पड़ा ,
वक्त ने जो दिया मुझे वो ज़ख्म सीना पड़ा।

इस गाने के बोल इतने सहज एवं सरल हैं कि ज्यादा कुछ कहने कि आवश्यकता बाकी नही रह जाती। फुरसत के वक्त और खासकर के जब मन थोड़ा उदास हो में इस गाने को गुनगुनाना पसंद करती हूँ।


Friday, March 7, 2008

i m not past it till now

i am tyrying to write down something since last 4 hours but not getting exact words. i think i m maha-upset with something and have no clue about it till now. today i was not able to attend my coaching class as i am sick. apart from this physical sickness, my mental state also dosen't allow me to do a lot of things. like i want to laugh, i want to forget everything that upsets me and everyone who has ever hurt me. but as always i m not able to do what i wish to. i m having this stupid headache since 3 days now and can do nothing as i know the reason behind it is my habit of thinking about the past again and again. i know that nothing can be done about a lot of things but i have this idiotic habit of thinking and thinking and thinking. i had this intution that though my papers were very good, something is going to get wrong. i had warned all my friends and everyone was suggesting me to be positive. now the result is out. though i have topped the class, my percentages are not upto my expectations. i m feeling really sad. it was not my mistake. it was mere luck. but why does this always happen to me. after all that i had to go through last year i was hoping to live life with new perspective in the new year. but everyday my past comes in front of me in one way or other. i try a lot to pretend that it doesn't bother me anymore and i have suceede a bit in pretending as my friends now believe me when i say that i m absolutely fine and fit. but i cant tell a lie to my own soul which always dreads at the thought of an encounter with him. i had loved him so dearly. but he was never loyal to me. not for a single second. atleast this is what i think now. but this had to happen to me. aafter thinking for almost i year and a half i had admitted my feelings about him to myself and then to him. i had thought about every problem which we would have faced, every step that we should have took. every positive and negative result of every single stupid question. i was so afraid to admit that i loved him that while while saying yes to his proposal which he had put in front of me 27th tlme, i had tears in my eyes. i had asked just one thing from him, to be honest. and look at my fate. that person never ever spoke a single truth to me. he was bold enough to break my trust and then accept that he has cheated me. i was shattered. but i tried to gather all the courage that was present inside me and face this blow with determination and hopes. everyone, including him now believes that i have eft everything behind and have moved forward in my life. a part of my soul has exactly done this only. but somewhere deep inside my heart there still is this question that-
" jo hua agar wo nahi hota to jo hota wo kaisa hota."

Monday, March 3, 2008

गुनाहों का देवता

ये आज फिज़ा खामोश है क्यों, हर ज़र्र को आख़िर होश है क्यों,
या तुम ही किसी के हो न सके , या कोई तुम्हारा हो न सका।

यही पंक्तियाँ हैं जो दिल मे कई दिनों तक तूफान सी उठती रही थीं जब मैंने पहली बार गुनाहों का देवता पढी थी। मैं तब सदमे में आ गई थी। सोचा ही नही था की जिस कहानी की शुरुआत इतनी मासूम और दिल को छू लेने वाली थी उसका अंत इतना दर्दनाक हो सकता है।
कभी कभी ऐसा भी होता है की हमारी ज़िंदगी के फैसले हमारे ही हाथों मे नही होते। वो फैसले या तो हमारी तकदीर लेती है या ऐसा कोई जिसे हमने उन्हें लेने का हक दिया होता है। कभी कभी हालत के हाथों मजबूर होकर भी हम कुछ फैसले लेते हैं। कभी हम ऐसे लोगों के सामने भी मजबूर हो जाते हैं जिनसे हम बहुत प्यार करते हैं

सुधा,जिसकी हर धड़कन चंदर की ताल पर थिरकती थी, उसने कभी भी ये नही सोचा होगा की चंदर उसको इस तरह से ख़ुद से दूर कर देगा। सुधा की तो हर साँस पर चंदर का हक था। पर सुधा की कोमल भावनाओं को चंदर ने अपने महान बनने की कोशिश मे नज़रंदाज़ कर दिया। मैं मानती हूँ की उसको सुधा की तकलीफ का एहसास था। पर सिर्फ़ एहसास काफी नही होता। सबसे बड़ी बात तो ये है की उन तकलीफों की वजह भी वो ख़ुद था। इंसान ये क्यों नही सोचता की कभी कभी एक आम आदमी बने रहना महान बनने से ज्यादा सुकून दे सकता है।
चंदर महान बनना चाहता था। वो चाहता था की वो और सुधा प्रेम पराकाष्ठा को छू लें। प्रेम की सांसारिक तस्वीर से अलग एक ऊंचाई तक पहुँचें। ख्वाब बहुत बड़ा था, पर चंदर का हौंसला नही। सुधा को एक अंधे कुएं मे धकेल कर वो ख़ुद दिशा खो बैठा और अपना आत्मविश्वास भी। उसका आत्मविश्वास लौटने की कोशिश मे सुधा ने अपनी ज़िंदगी कुर्बान कर दी।
मेरी पोस्ट पढ़ कर शायद सभी को ये लगे की मैंने एक बार भी ये नही सोचा की चंदर किस दर्द से गुज़रा। ये बात नही है। मैं मानती हूँ की तकलीफ चंदर को भी हुई, पर उसका जिम्मेदार वो ख़ुद था। जब उसमे इतनी हिम्मत थी की दोनों की ज़िंदगी के फैसले वो ख़ुद ले सके और फिर सुधा को उन्हें मानने के लिए मजबूर कर सके तो फिर उस फैसले को ज़िंदगी भर खुशी से मनाने का माद्दा भी होना चाहिए था। बड़े बड़े सपने देखना बहुत आसन होता है। पर उन सपनों के लिए किसी और की ज़िंदगी से खेला नही जाता। वो भी ऐसे इंसान की जो आप पर बहुत भरोसा करता है और जिस से प्यार करने का दावा आप ख़ुद करते हैं। और अगर ऐसा कर भी गए तो फिर कम से कम उस इंसान को बीच मंझधार मे छोड़ कर अपने ही फैसलों पर अफ़सोस नही जताया जाता। विश्वास की बात करने वाले कभी विश्वासघात नही करते। जो लोग ज़िंदगी का सहारा होते हैं वो बीच राह मे साथ नही छोड़ते।
अक्सर सोचती हूँ की क्या गुज़री होगी सुधा पर जब उसने चंदर को अपने ही सिद्धांतों से पीछे हटते देखा होगा। जीवन के मूल्यों को सुधा ने चंदर से ही समझा था। उसकी प्रेम मे जो आस्था थी उसकी नींव चंदर पर उसका विश्वास था। चंदर के कदमो के डगमगाने ने उस विश्वास को खोखला साबित कर दिया। सुधा को ये सोचने पर मजबूर कर दिया की उस ही के प्यार मे कहीं कोई कमी रह गई जो चंदर दिशाहीन हो गया। इस अपराधबोध ने सुधा की जान ले ली। कितने दुःख की बात है की उसने बिना गलती किए ही बाकी सब की गलतियों की सज़ा भुगती। कई पंक्तियाँ हैं जो दिल को छूती हैं पर फिलहाल तो यही याद आ रही है की-
मौजें भी हमारी हो न सकीं, तूफा भी हमारा हो न सका।

Friday, February 29, 2008

रंजिश ही सही

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ,
आ फ़िर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।

पहले से मरासिम न सही फ़िर भी कभी तो
रस्मो रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ।

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम,
तू मुझसे खफा है तो ज़माने के लिए आ।

कुछ तो मेरे पिन्दारे- मोहब्बत का भरम रख,
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ।

एक उम्र से हूँ लअज्ज़ते - गिरिया से भी महरूम,
ऐ राहते - जां मुझको रुलाने के लिए आ.

अब तक दिले खुश्फहेम को तुझसे हैं उम्मीदें,
ये आखरी शम्में भी बुझाने के लिए आ।

माना के मुहब्बत का छुपाना है मुहब्बत,
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ।

जैसे तुझे आते हैं ना आने के बहने,
ऐसे ही किसी रोज़ ना जाने के लिए आ।

ये ग़ज़ल काफी दिनों से पोस्ट करना चाह रही थी पर इसके सारे अल्फाज़ नही मिल पा रहे थे। कल बहुत ढूँढने पर इंटरनेट पर मिल गए। ये ग़ज़ल पहले हमेशा मेरे लिए एक पहेली हुआ करती थी। मन मी एक ही सवाल उठा करता था की कोई किसी को दिल दुखाने के लिए और छोड़ के जाने के लिए क्यों बुलाएगा। कहते हैं न की
" जाके पैर न फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।"
तो जब ख़ुद इस दौर से गुज़री तो मालूम हुआ की कभी कभी किसी के होने का एहसास होना ही बहुत ज़रूरी होता है। फ़िर चाहे वो इंसान आपकी तकलीफों की वजह ही क्यों न हो। प्यार इंसान को इस कदर मजबूर कर देता है की उसको दर्द भी अपना लगने लगता है। सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वो दर्द उस का दिया हुआ होता है जिस से वो मुहब्बत करता है।

Wednesday, February 27, 2008

filhaal

aye zindagi,
ye lamha jee lene de.

pehle se likha, kuch bhi nahi,
roz naya kuch likhati hai tu,
jo bhi likha hai, dil se jiya hai,
ye lamha filhaal jee lene de

masoom si hasi bewajah hi kabhi hoothon pe khil jati hai
anjaan si khushi behti hui kabhi saahil pe mil jaati hai,
ye anjaana sa darr ajnabee hai magar khubsurat hai jee lene de
ye lamha filhaal jee lene de

dil hi me rehta hai, aankhon se behta hai, kaccha sa ek khwab hai,
lagta sawaal hai, shayad jawaab hai, dil phir bhi betaab hai,
ye junoon hai to hai, ye sukoon hai to hai, khubsurat hai jee lene de
ye lamha filhaal jee lene de.

movie- filhaal
lyricist- gulzaar

is geet ke baare me jyaada likhna vyarth hai.iske bol seedhe aur saral hain.
zindagi me kabhi kabhi kuch aise rishtey bante hain jinka koi naam nahi hota, koi pehchaan nahi hoti. wo kuch sukoon ke pal jo in rishton ki badaulat hamko naseeb hote hain wo bade anmol hote hain. kuch rishtey benaam hi reh jaayein to hi achcha rehta hai. ye rishtey hamari himmat bhi hote hain aur kai baar anjane me hi hamare muskurane ki wajah bhi. kuch sawaal aise hote hain jinka koi jawaab nahi hota. kuch pareshaniyaan aisi hoti hain jinka koi hal nahi hota. par zindagi kahin bhi theharti nahi hai. ye apni gati se badhati hai. aur iske saath me badhate hain hum. par ye bhi sach hai ki zindagi jeene me aur katane me bahut fark hota hai. tareef ki baat to tab hai jab dard me bhi lab muskurate rahein. hum zindagi ke nagme gungunate rahein aur aane wale kal ka besabri se intezaar karein. ek aise kal ka jo yakeenan aaj se behtar hoga. hazar takleefein jhelte hue bhi zindagi ko zindadili se jeene wale sabhi logon ko mera salaam.

Saturday, February 23, 2008

tehzeeb

aapko mujhse gila hota na shikwa hota,

meri majboori ko gar aapne samjha hota.

dard ki yaad me bhi dard hai behtar ye tha,

apne jhakhmo ka hisaab humne na rakkha hota.

khwab dekhe the jo humne wo sabhi sach hote,

sochiye aisa agar hota to kaisa hota.

ye ghazal hai film tehzeeb ki. kai logo ne na to ye movie dekhi hogi aur na hi kabhi ye geet suna hoga. ek baar garmiyon ki chutti me channel surfing karte hue achanak shabana azmi ji dikhai padi. mujhe pata hi nahi tha ki kaunsi film chal rahi hai. tab thodi bahut dekhi aur uska ye geet dimag me atak gaya. storyline bhi mujhe behad pasand ayi thi. pichle saal phir achanak aise hi ye movie zoom par chal rahi thi. adhi se jyada aana baki thi to bade dhyan se dekhi. agle din cd shop par jakar mangi to shopkeeper ne poocha ki ye kaunsi movie hai. bada gussa aaya. use poori cast ki jaankari di. 10 din baad mujhe iski vcd mil payi. uske baad to pata nahi ye movie kitni baar dekhi. kuch hisse mujhe itne pasand aaye ki baar baar forward karke sirf unhi ko dekhti hoon.ye ek aisi maa aur beti ki kahaani hai jo ek doosre se bahut pyaar karti hain par kabhi jata nahi paati. kuch galatfahmiyan unke rishtey ko sard kar deti hain. urmila mantodkar mne sheershk bhoomika nibhai hai. aur arjun rampal unke pati hain aur is movie ke sutradhaar bhi. dia mirza ne aisi choti bahen ka kirdaar nibhaya hai, jo ki mansik roop se vishipt hai. chhotimoti kamiyon par dhyan na dekar agar sirf kirdaron ke aapsi rishton aur bhavnao par dhyan kendrit kiya jaaye to ye nissandeh badi hi pyaari film hai.

Friday, February 22, 2008

tujhse naraz nahi zindagi

aaj us geet ke bol man-mastishk me goonj rahe hain jo pata nahi kaise dheere dheere meri pehchan ban gaya hai. mere sabhi mitron ke, parichiton ke samne kisi choti moti mehfil me, ya fir kisi bade se jalse mein ye geet mein kitne baar gaa chuki hoon ye mujhe khud bhi yaad nahi hai. is geet se mera parichay kab hua ye to mujhe yaad nahi par colledge me freshers ke liye audition ho rahe the. mujhe jab kuch bhi apni pasand ka sunane ke liye kaha gaya to mujhe ye hi geet yaad aaya. us din se aaj tak bas yahi geet hai jo hamesha mere hoothon par rehta hai. aalam ye hai ki koi neend se utha kar gaana gaane ko kahe to yahi gaaungi. waise ye ek ghazal hai jo ki gulzar saheb ne likhi hai. iske shabdon me itni taakat hai ki ghazal ki shuruwaat ke saath mahaul sanjeeda hona shuru hota hai, madhya mein pahunchne tak gane wale aur sunane walon ki aankhon me aansoo jhilmilane lagte hain aur ghazal ke khatm hone par sabke hoothon par ek bheegi si muskurahat dikhai padati hai.
ye ghazal hai film masoom ki jise lika hai gulzar ne aur sangeetkaar hain R.D. Burman. lata ji ki awaaj me jab ye geet sunai padta hai to mein sab kuch chod kar sirf ise sunane baith jaati hoon. har baar sunane par kuch naya seekhne ke liye milta hai. phir chahe wo sur ki koi baareeki ho ya zindagi ki sacchai. kehte hain ki kisi ka bhi dard kam ya jyaada nahi hota. dard sirf dard hota hai. is ghazal me har insaan ka har dard pratibimbit hota hai. isliye shayad aaj tak aisa koi bhi nahi mila jiski aankhen ye ghazal sunkar na jhilmilayi ho. bahut dino se iske baare me likhna chahti thi par shabd saath nahi de rahe the. aaj wo shubh muhurat aa hi gaya

tujhse naraz nahi zindagi hairaan hoon main,
tere masoom sawalon se pareshan hoon main.

jeene ke liye socha hi nahi dard sambhalne honge,
muskuraye to, muskurane ke karz utarne honge,
muskuraun kabhi to lagta hai jaise hothon pe karz rakha hai.

aaj agar bhar aayi hain boonden baras jaayengi,
kal kya pata inke liye aankhen taras jaayengi,
jaane kab gum hua, kahan khoya, ek aansu chupa ke rakkha tha.

zindagi tere gham ne hame rishtey naye samjhaye,
mile jo hame, dhoop me mile, chhaon ke thande saaye.

tujhse naraz nahi zindagi hairaan hoon main,
tere masoom sawalon se pareshan hoon main.

Thursday, February 21, 2008

dard ke phool

dard ke phool bhi khilte hain, bikhar jate hain

jakhm kaise bhi hon kuch roz me bhar jaate hain.

raasta roke khadi hai yahi uljhan kabse,

koi puche to kahen kya ki kidhar jate hain.

chat ki kadiyon se utarte hain mire khwab magar,

meri deewaron se takrakar bikhar jate hain.

narm alfaaz, bhali baatein, muhajjab laheje,

pehli baarish me hi ye rang utar jaate hain.

us dareeche me bhi ab koi nahi aur hum bhi,

sar jhukaye hue chupchap guzar jate hain.

-javed akhtar (tarkash)

ye bahut bada sach hai ki jakhm chahe kitna bhi gehra ho, dukh chahe kitna bhi bada ho, sab kuch hi waqt tak pareshan karte hain. uske baad unke saath rehne ki aadat ho jati hai. koi zindagi me aaye ya jaye, zindagi kabhi kisi ke liye rukti nahi, khatam nahi hoti. hume sab kuch na bhool kar bhi bhoolne ka dikhawa karna hi hota hai, kunki roone wale ke saath koi nahi roota. aakhir roone se hasil bhi kya hoga. sirf intejaar kiya jata hai. intejaar- ye shabd meri niyati ban chuka hai. jab tak wo saath thi kuch aur chahiye hi nahi tha. wo mere liye sab kuch thi. my friend, philosopher and guide.main nahi janti ki kaun kitna ghalat hai par us se door hone ke alawa mere paas koi aur raasta nahi tha. kaash kabhi wo sahi sabit ho paye.uska ghalat hona mere vishwaas ko bahut badi thes pahuchayega. mein bas prarthana kar sakti hoonki kam se kam is baar maine insaan ko samajhne me dhooka na khaaya ho.

Wednesday, February 20, 2008

TAPASYA

aaj koi geet ya ghazal yaad nahi aa rahi hai. aaj yaad aa rahi hain ek aise kitab ki kuch panktiyaan jo mujhe behad pasand hai. ek ek shabd to theek se yaad nahi parantu the kuch is prakaar.
" achanak hi ek vakya yaad aa gaya. kuch saalon pehle tak ek patli si pagdandi thi jo mere ghar ko abhijeet ke ghar se jodti thi. ek baar chuttiyon ke baad jab ghar lauti to baarish ne us pagdandi ke nishaan mita diye the aur wahan kuch ghaas ug aayi thi."mandira ye baat tab sochti hai jab abhijeet aphi prastavit videsh yatra ka jikr karta hai. mandira ke sawaalon ke jawaab me kehta ki mere rukne ki koi wajah bhi to nahi hai.

ye upanyaas bade hi khoobsurst dhang se un logon ki zindagi ki uljhano ko rekhankit karta hai, jo bhagya se ladte hain ye sochkar ki ek din jab haalaat sudhrenge tab hum apne baare me sochnge. par ssari umar sahi waqt ke intejaar me hi kat jaati hai. mandira par apne maata-pita ki grahasti ka dayitva chooti umar me hi aa jata hai jab un dono ki mritu kuch hi samay ke antaraal se ho jaati hai. vipreet parishtihiyon se jujhte hue wah apne chaaron choote bhai behnon ko is laayak banati hai ki ve apne pairon par khade ho saken. is daud bhaag me saath chalte hue bhi pheeche chut jata hai abhijeet jo mandira ki jimmedarian aur taklifen baantna chahta hai. parantu mandira apne aham ko swabhimaan ka naam dete hue use dekhkar bhi andhekha kar deti hai. bhai bahen bade hote hain aur didi ki taraf se mooh mod lete hain, jaisa ki aaj ka lagbhag har insaan karta hai aur apne swaarth ko duniyadaari ka naam de deta hai. abhijeet ke videsh chale jaane par mandira ko uski kami aur ahamiyat ka ehsaas hato hai. us waqt mandira hisaab lagane baithti hai aur pati hai ki zindagi ke har mod par abhijeet hi sabse jyaada chala gaya hai. abhijeet, ek aisa insaan jo purna samarpan ke saath uske har kadam par uske saath raha par apne gham kabhi bhi zaahir nahi kar paaya. apni aakhri zimmedari puri karne ke baad hi mandira usko apna paati hai.
is kahani me mandira ka drishtikon yahi raha ki jimmedariyon ke sath agar wah abhijeet ke ghar jayegi to us par bhoojh ban jayegi. aur abhijeet ko hamesha is baat ka malaal raha ki mandira ne usko khud se alag samjha. apni jimmedariyon ka thooda sa hissa wo use bhi to de sakti thi. main mandira ke nazariye se khud ko jyaada sehmat pati hoon. zimmedariyaan poori hone ke baad insaan jab apni khushi ko apnata hai to uski dasha theek vaisi hi rehti hai jaise bahut mehnat se padhai karne ke baad parikshayen samapt ho gayi hoon aur aant me kuch sukoon ke pal arthat chuttiyan naseeb hui hoon. apni vyaktigat zindagi me bhi isi raaste par chalne ka prayas kar rahi hoon. main ye kabhi bhi bardaasht nahi kar sakti ki koi mujh par yeh keh kar ungali utaye ki mujhe apni zimmedariyon ka ehsaas nahi hai. kal ko jab mujhe ye bharosa ho jayega ki main apna dayitva nibha chuki hoon tab apne haq ki baat karungi.

Saturday, February 16, 2008

ek din fursat ne

ek din fursat ne, thaame haath hamare,
le gayi us dagar pe, jahan rehti hain baharein.
chal diye hum bhi ghar se, ho ke kuch bekhabar se,
dil tha apne bharose, hum the dil ke sahare.

raah me mod aaya, roshni ho gayi kam,
kuch dil ghabraya, ye kahan aa gaye hum
aage us mod ke bhi to baharein nahi thi
bhooli kuch khwahishein aur, khwab the bas hamare.

bewajah lag rahi thi, jab talash hamari,
ek khushbu uthi aur rut badal gayi saari,
saamne tum khade the, faila ke baahen
jaise har dard mera khud me loge samaye
pal bada mukhtasar tha, tere seene pe sar tha,
yun laga mar na jayen itni khushiyon ke mare.

ek din fursat ne thame haath hamare,
le gayi us dagar pe, jahan rehti hain baharein.

movie- zindagi rocks
lyricist- mudassar aziz

shayad ye har insaan ka sapna hota hai ki koi aisa uski zindagi me aaye jo na sirf use khush rakhe balki uske aansu baantne se bhi na katraye. aise hi jazbaaton ko samne lata hai ye gana. ek lambe intejaar ke baad aayi hui khushi aur us khushi se chalke hue aansuon ki jhalak hai is gaane me.

bekaar hame gham hota hai.

sach ye hai bekaar hame gham hota hai,
jo chaha tha duniya me kam hota hai.

dhalta suraj, faila jungal, rasta gum,
humse pucho kaisa aalam hota hai.

gairon ko kab fursat hai dukh dene ki,
jab hota hai koi humdum hota hai.

jhakhm to humne in aankhon se dekhe hain,
logon se sunte hain marham hota hai.

jhehan ki shaakhon par ashaar aa jate hain,
jab teri yaadon ka mausam hota hai.
JAVED AKHTAR.
(ashaar - sher)

in shabdon ki vyakhya karne ke liye mere pas apne koi shabd nahi hain. bas itna hi janti hoon ki bacchan ji ne sahi kaha tha ki " man ka ho to acchha, na ho to aur acchha"
isliye jab bhi man ke virrudh kuch hota hai to yahi umeed lekar chalti hoon ki shaayad meri taqder me kuch aur hai jo yakeenan mere is khwab se jyaada khubsoorat hoga.

Friday, February 15, 2008

really dont know what to do here. just not feeling well. thought of writing something. and what could be better than these lines which are very dear to me,

boodha tappar, toota chappar, aur uspar barsatein sach,
usne kaise kati hongi lambi lambi raatein sach.

lafjon ki duniyadari me rishton ki sachhai kya,
mere sacche aansu jhoote, uski jhooti baatein sach.

jane kyun meri neendon ke haath nahi peele hote,
palkon se lauti hain kitne sapno ki baaratein sach.

kacchi chahat, baasi rishtey aur adhura apnapan,
mere hisse mein aayi hain aisi hi saugatein sach...............